दरअसल वोट मुसलमान की मौत से नही मिलेंगे। भगवा नकाब लगाया बच्चा, पहली बार हथियार लहराते हुए, जब “जय श्रीराम” के नारे लगाता है, उस क्षण उसके भीतर,कुछ खत्म हो जाता है।
और कुछ पैदा हो जाता है।
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खत्म होता है बचपन, सामाजिक लिहाज…
मां बाप की सीख, इन्सानी तरबियत।
पैदा होती है झुंड में एनोनिमस होने की ताकत..
एक बड़े संगठन से, जुड़ जाने का यूफोरिया, सत्ता का संरक्षण, कानून के प्रति हिकारत और जिंदगी में अपराजेयता का अहसास।
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ये सारे अहसास झूठे हैं, आभासी हैं।
पर यह खुलासा तो अहसास उसे एकदम अंतिम क्षण में होगा। उसके पहले वह दहाडेगा, नाचेगा, चुनौतियां देगा। ऐसे खतरे में खुद को डालेगा, जहाँ उसे नही होना चाहिए।
एक बार, दो बार.. बार बार। तब तक…
जब तक उसकी रक्त रंजित,निर्जीव देह वापस न आये।
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कोठारी ब्रदर्स के रक्त के बगैर अयोध्या आंदोलन सिरे नही चढ़ सकता था, और चन्दन के मरे बगैर कासगंज नही जल सकता था।
और बहराइच में इस लड़के के मरे बगैर, खतरे में आये हिंदुत्व का फलसफा, जमीन नही पा सकता है।
दरअसल मुसलमान का खून तो गिल्ट पैदा करता है। गुस्सा केवल हिन्दू मौत से भड़कता है। और फिलवक्त गुस्सा भड़काने का जतन चल रहा है।
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अशुभ काल सर पर है।
मणिपुर से मेवात तक, जयपुर से गुजरात, उत्तराखण्ड से उत्तर प्रदेश तक एक भयंकर खतरा मंडरा रहा है।
ये खतरा हिंदू बच्चों पर है। क्योंकि क्रिया और प्रतिक्रिया के खेल में बहुसंख्यक को झोकने के लिए हिन्दू का खून पहले चाहिए।
हिंदुत्व में रवानी नही चढ़ेगी,
अगर हिन्दू का खून नही बहेगा।
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पर बच्चे पर धर्म का नशा है।
उम्र का जोश है, वह भगतसिंह बनना चाहता है। पर अशोक मोची या लारेंस विश्नोई बनने की राह पर दौड़ रहा है।
वह किसी के हाथ मे खेल रहा है।
मौत का जुआ खेल रहा है।
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तो भगवा नकाब लगाया आपका बच्चा, अगर आज पहली बार हथियार लहराते हुए, जय श्रीराम के नारे लगाता हुआ आया है,
तो उसे रोक लीजिए।
उसके राम, घर के पूजागृह में हैं, दिखाइए। मैं हाथ जोड़कर कहता हूँ। उससे पूछिये, की कल वो कहां था, क्या कर रहा था।
क्यों कर रहा था???
आगे क्या करेगा???
अगर उसके हाथों से हथियारों की गंध
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