इंस्पेक्टर गुप्तेश्वर सिंह अपने पुलिस दल के साथ गौरी बाजार में खड़े थे।
शोर था, शराब की बिक्री रोकने के लिए दुकान का घेराव हो रहा था। भगवान यादव आगे आगे थे। पीछे मुट्ठी भर लोग..
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ये कोई नई बात नही थी, अब तो रोज देश भर में ये सब चल रहा था। गांधी ने असहयोग आंदोलन छेड़ रखा था।
सब इंस्पेक्टर पृथ्वीलाल, और गुप्तेश्वर ने प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया।
ये 2 फरवरी 1922 था।
खबर फैल गयी। भगवान यादव रिटायर्ड फौजी थे, उनका बड़ा सम्मान था। गिरफ्तारी से गुस्सा फैल गया।
4 फरवरी को तीन हजार लोग, गोरखपुर में चौरीचौरा के गौरी बाजार की शराब दुकान घेरने आ गए।
हंगामा देख गुप्तेश्वर सिंह ने अपने सिपाही भेजे। किसी ने पत्थर फेंक दिया, तो पुलिसवालों में हवाई फायर किये।
लेकिन पथराव तेज हो गया। अब पुलिसिया गोलीबारी में 3 लोग मारे गए।
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एक तरफ पुलिस की गोलियां खत्म हुई, उधर लोगो का गुस्सा सातवें आसमान पर।लोगो ने दौड़ा लिया।
भागकर सारे थाने पहुचें।भीतर से दरवाजे बंद कर लिए। पगलाई भीड़ ने थाने में आग लगा दी। 22 पुलिसकर्मी जिंदा जल गये।
इनके नाम
– इंस्पेक्टर गुप्तेश्वर सिंह
– सब इंस्पेक्टर पृथ्वीलाल
– हवलदार बशीर खान
– हवलदार कपिल देव सिंह
– सिपाही विश्वेशर राम यादव
– सिपाही मोहम्मद अली
– सिपाही हसन खान
– सिपाही रामबली पांडे
– सिपाही मंगल चौबे
– सिपाही इन्द्रसेन सिंह
– सिपाही हसन खान
– सिपाही गदाबक्श खान
– सिपाही जामा खान
– सिपाही कपिल देव
– सिपाही रामलखन सिंह
– सिपाही मर्दाना खान
– सिपाही जगदेव सिंह
– सिपाही जगई सिंह
– सिपाही लखई सिंह
– चौकीदार वजीर
– चौकीदार घिसई राम
– चौकीदार जठई राम
– चौकीदार कटवारू राम
सिपाही रघुवीर सिंह, जो पहले मृत घोषित किये गए थे, वे जिंदा पाये गए। समय रहते बचकर भाग निकले थे।
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अंग्रेज सरकार ने इस घटना के बाद चौरीचौरा के आसपास जमकर रेड मारी, लोगो को गिरफ्तार किया। मुकदमे चलाये।
19 लोगो को फांसी हुई –
इनके नाम थे-
भगवान यादव, श्यामसुंदर, रघुवीर, रामलखन, रामरूप, सहदेव, नजर अली, लाल मोहम्मद, अब्दुल्ला, विक्रम यादव, दूधी सिंह, कालीचरण, लौती कुमार, महादेव सिंह, मेघू अली, रूदल, मोहन, सम्पत और सीताराम
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इसके अलावे 14 लोगो को आजीवन कारावास, 19 को आठ साल, 57 लोगो को 6 साल , 20 लोगो को 3 साल और 3 लोगो को 2 साल की जेल हुई।
देश स्तब्ध था। चार माह पहले दक्षिण में हुए मोपला का यह अब उत्तर भारत में दोहराव था।
गांधी 5 दिन के उपवास पर बैठे, पश्चाताप किया।
यह मान लिया कि देश अभी आजादी के लिए तैयार नही है। उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। भविष्य के आंदोलनों के लिए अहिंसा को सर्वोपरि रखने का प्रण किया।
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पर ब्रिटिश सरकार ने गांधी पर भी राजद्रोह का मुकदमा डाला, उन्हें 6 साल की जेल हुई। मगर 2 साल बाद, 1924 में उन्हें रिलीज कर दिया गया।
बहरहाल 22 पुलिसवाले, 3 गोलीबारी में और 19 फांसी चढ़कर मरे। जेल जाकर बरबाद हुई जिंदगियां अलग है। मरने औऱ मारने वाले, दोनो तरफ भारतीय थे।
वे हिन्दू थे, मुसलमान थे, ठाकुर थे, यादव थे, ब्राह्मण थे। मुझे पता नही कौन अपराधी था, और कौन शहीद।
बहरहाल जो पुलिसकर्मी, ब्रिटिश सरकार के मुलाजिम थे, तो उनके लिए शहीद थे। तो ब्रिटिशर्स ने थाने में मरे पुलिसवालों की याद में एक स्मारक बनाया।
सबके नाम उस पर लिखे गए।
आजादी के बाद उस स्मारक पर जय हिंद भी लिख दिया गया। और लिखा एक शेर-
शहीदों की चिताओ पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालो का यही अंतिम निशां होगा
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और शहीद गुप्तेश्वर पांडे और उनके सिपाहियो को जलाकर मारने वालो का क्या हुआ?
अरे भाई, आखिर अंग्रेजो ने उन्हें फांसी चढ़ाया था। तो वो भी हमारे शहीद हुए न।
तो थोड़ी दूर पर थाना जलाने वालो का भी मेमोरियल बना। ये वाला ज्यादा ऊंचा है, और उस पर फांसी के फंदे से लटकता हुआ एक चेहरा है।
जय हिंद !!!
वतन पर मिटने वालो का..
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दोनों मेमोरियल उनकी मेमरी ताजा करने के लिए खड़े हैं। आप किस पर फूल चढ़ाएंगे?
डिपेंड करेगा, आपकी सोच पर
जिस घटना में भारतीय, भारतीयों को शूट कर रहे थे, पत्थर चला रहे थे, जिंदा जला रहे थे, उन्हें आप किस पक्ष से खड़े होकर देखते है।
वो आपका व्यू..
लेकिन गांधी का व्यू यह था कि भारतीय अभी सेल्फ रूल, और आजादी के लायक हुए नही। फिर आजादी 26 साल खिंच गई।
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मुझे इसके “शताब्दी वर्ष” का गर्वीला आयोजन बड़ा विद्रूप लगा।
100 साल पहले जिस घटना ने हमारे लीडर्स के दिलो को छेदकर रख दिया था। 100 साल की हमारी लीडरशिप, बाद हिंसा के उस नग्नोत्सव का जश्न मना रही थी।
ये मेमोरियल, ये जश्न दो दौर की लीडरशिप के गुणात्मक अंतर का जिंदा सबूत हैं।
और सवाल यह भी, क्या आज हम आजादी के लायक हो गए हैं?
🙏