@rebornmanish का लेख
9 अगस्त 1965 को सिंगापुर आजाद हुआ।
उसी ब्रिटिश से, जिससे हिंदुस्तान 20 साल पहले आजाद हो चुका था। आज कुछ दशक बाद सिंगापुर की प्रति व्यक्ति आय पचपन लाख रुपये है,
एक भारतीय की महज 1.75 लाख।
गलती कहां हो गई।
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यह सच है कि अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त भारत, एक विशाल आर्थिक खंडहर था।
ब्रिटेन की सरकार ने, भारत मे वाइसराय की सरकार कोई 5700 करोड़ रुपये का आधिकारिक कर्ज ले रखा था। उस वक्त की यह राशि, आज के 1.73 ट्रिलियन होती है।
मगर अंग्रेजो ने आजादी दी, उसके पहले अपना कर्ज माफ कर लिया।
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महज 176 करोड़ के बजट से हमारी शुरुआत हुई। देश मे न उद्योग थे, न तकनीक थी, न शिक्षा थी, और न शिक्षितो वाला व्यवहार था।
और इस पर अगले 25 साल में सरकार ने 4 युद्ध लड़े, हथियारों की दौड़ में शामिल हुई, एटमी परीक्षण किए।
और जनता-
उसने 3 गुनी आबादी पैदा की।
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सिंगापुर भी आर्थिक खंडहर ही था। अकुशल आबादी थी। जापानी और अंग्रेजी आक्रमणों ने उसकी आत्मा को दबा कुचला रखा हुआ था। मलय जाति के साथ तनाव भी था।
मगर सिंगापुर ने आकार नही, मयार बढाया। छोटे से देश के पास कोई नैचुरल रिसोर्स न थे। हां, लोकेशन थी, एक पोर्ट था।
मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान दिया। सर्विस इंडस्ट्री, पोर्ट पर जहाजों की जरूरतों को पूरा करने में लग गयी। दुनिया का बेस्ट पोर्ट बना। बैंकिंग और रेमिटेंस, आना जाना, आसान किया।
सिंगापुर एयरलाइन दुनिया की प्रमुख एयरलाइन बन गयी। चेंगी एयरपोर्ट, हांगकांग, ऑस्ट्रेलिया, जापान और पूर्व की ओर जाने के लिए प्रमुख जंक्शन बन गया।
बेरोजगारी घटी, आय बढ़ी।
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सड़कें बढ़ी, सुविधाये बढ़ी। पर्यटन के लिए कुछ नही था। वहाँ हॉलीवुड थीम पार्क बना, संतोसा, स्काई गार्डेन, गार्डन बाई द बे, विशाल सी एक्वेरियम, मर्लिन स्टेचू.. एक भी प्राकृतिक चीज नही।
सब मानव निर्मित, भव्य.. खूबसूरत। आज सिंगापुर एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन है। उसकी आय, और सर्विस इंडस्ट्री का प्रमुख साधन है।
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झुग्गियां हटी। HBD एपार्टमेंट बने। इसमे लोगो को 30 साल की लीज मिलती, किराया देना होता। मालिकाना हक सरकार का होता।
आज 90% सिंगापुर इसी तरह के मकानों में रहता है शुरुआत से एक शांत शहर है। बहुत सी भाषा, बहुत से एथनिसिटी, कई धर्म के लोग रहते हैं। कोई दंगा नही, झगड़ा नही।
इसे पूर्व का यूएसए समझिये। वो दुनिया के हर इमिग्रेंट के लिए, हर टैलेंट के लिए खुला है। सबको बराबरी हासिल है।
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पढ़कर, आप निराश हुए।
इस दौर नें हिंदुस्तान ने क्या किया?? मगर निराश न हों, जो तस्वीर लगी है, वह सिंगापुर नही, मुम्बई है।
आमची मुंबई।
और हिंदुस्तान में हमने पूना, हैदराबाद, और चेन्नई, बंगलौर बनाये हैं। दरअसल हमने कई सिंगापुर बनाये हैं।
इनकी बदौलत हम आज हम दुनिया की 5 वीं अर्थव्यवस्था हैं। सिंगापुर तो 34 वें नम्बर पर है।
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महाराष्ट्र सिंगापुर को टक्कर देता है।
तमिलनाडु देता है, केरल, कर्नाटक, गुजरात देता है। और शेष..
बैठकर खाते हैं।
कम कमाते हैं, ज्यादा उड़ाते हैं।
केंद्र कमाने वालो से पैसा लूटता है, बैठकर खाने वालों को सहयोग करता है।
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सिंगापुर का पैसा सिंगापुर में लगता है। इन राज्यो का पैसा भी 70 साल वहीं पर लगता, तो शायद यूएसए को टक्कर देते।
सोचिये।
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और फिर सोचिये कि जिन राज्यों के नाम ऊपर नही लिखे, वहां क्या उत्पादन, शिक्षा, व्यापार, शांति, भाईचारे, मेहनत का बोलबाला है??
उत्तर ना में है।
भारत का उत्तरी हिस्सा, जहां 52% देशवासी रहते हैं, एक मवाद से भरा फोड़ा है।
यहां नफरत है, जाति है, धर्म है, सेनाएं है, राष्ट्रवाद है, मंदिर है, व्हाट्सप है, पाकिस्तान है, चीन है, शेर है, चीता है, बाबा है, बुलडोजर है।
और बुलडोजर बाबा के पीछे पागल जनता है।
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जनसँख्या यहाँ मानव संसाधन नही, कबीलों में बंटा वोट है। यह कोर कोर झगड़ालू समाज है।
इसे हर चीज से समस्या है। बाप से दिक्कत, चाचा से, पड़ोसी से दिक्कत है। किसान से दिक्कत है, मुसलमान से दिक्कत है।।
चीन से, पाकिस्तान से, बंगलदेश से दिक्कत है। उसे दलित से, ठाकुर से, ब्राह्मण से, आरक्षण से दिक्कत है।
उसे बंगाल, केरल, मणिपुर और मिजोरम से दिक्कत है। वो सबको ठीक करना चाहता है।
एक्के बार मे सबका परमानेंट सॉल्यूशन चाहता है। सिंगापुर से नही, पाकिस्तान से कम्पटीशन चाहता है।
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दरअसल जो स्टेट पॉलीटकली इम्पोर्टेट हैं। वो इकोंमिकली वीक है।
वहां सोसायटी वीक है, मानसिकता बिखरी, सशंकित, फिरको में गुलबन्द है। यहां गुण्डई से वोट मिलते है, यहाँ नफरत का सिक्का खनकता है।
कुंठितो की इस धरती पर,कोई सिंगापुर नही है।
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पर इसमे कोई आश्चर्य क्यो करना??? ऐसी धरती पर कभी कोई सिंगापुर नही पनप सकता। वहां तो साहब..
एक अदद मुम्बई भी नही पनप सकता।