गौर से देख, ख़ुशियाँ भी कहाँ कम हैं। डा सतीश शर्मा की कविता

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उसने कहा- बेवजह ही

ख़ुश क्यों हो ?

मैंने कहा- हर वक्त दुखी

भी क्यों रहूँ।

 

उसने कहा- जीवन में

बहुत ग़म है!

मैंने कहा -गौर से देख,

ख़ुशियाँ भी कहाँ कम हैं

Dr Satish Chandra Sharma
Dr Satish Chandra Sharma

?

 

उसने तंज़ किया –

ज्यादा हँस मत,

नज़र लग जाएगी!

मेरा ठहाका बोला-

हंसमुख हूँ,

फिसल जाएगी!

 

उसने कहा- नहीं होता

क्या तनाव कभी?

मैंने जवाब दिया- ऐसा

तो कहा नहीं!

 

उसकी हैरानी बोली-

फिर भी यह हँसी?

मैंने कहा-डाल ली आदत

हर घड़ी मुसकुराने की!

 

कोई मुझसे “मैं दुखी हूँ”

सुनने को बेताब था,

इसलिए प्रश्नों का

सिलसिला भी

बेहिसाब था…!

 

उसने पूछा – कभी तो

छलकते होंगे आँसू?

मैंने कहा-अपनी

मुस्कुराहटों से बाँध

बना लेता हूँ!

अपनी हँसी कम पड़े तो

कुछ और लोगों को

हँसा देता हूँ!

 

कुछ बिखरी ज़िंदगियों में

उम्मीदें जगा देता हूँ!

यह मेरी मुस्कुराहटें

दुआऐं हैं उन सबकी

जिन्हें मैंने तब बाँटा,

जब मेरे पास भी कमी थी!

 

मुस्कराईए….

ये जिंदगी बहुत हसीन है,

अपनी हंसी में सबको हिस्सेदार बनाइये…

स्वस्थ रहिये मस्त रहिये!!!!

 

🌹वन्दन अभिनन्दन सुप्रभात!!🌹https://Maabhagwatihealthcarefoundation.com

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