।।कलम चल पड़ी है मेरी।। डा सतीश शर्मा की कविता

Dr Satish Chandra Sharma
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कलम चल पड़ी है मेरी…!
★★★★★★★★★★★

कलम चल पड़ी है मेरी ,
अब कहां रुकने वाली,
मेरा लिखना किसी को भाएगा ,
किसी को ना पसंद आएगा ,
कोइ ईर्ष्या से भर जाएगा ,
तो कोई उत्साह मेरा बढ़ाएगा
इसकी परवाह अब मुझे कहां होने वाली,
कलम चल पड़ी है मेरी,
अब कहां रुकने वाली!

भांति –भांति के लोग,
भांति –भांति की बातें होंगी ,
किसी को रूप भाएगा,
किसी को आभ्यांतरित जज्बात रुलाएगा ,
ये उनकी रजा है,
इसकी परवाह मुझे कहां होने वाली,
कलम चल पड़ी है मेरी,
अब कहां रुकने वाली !

कविता मेरी,
कभी प्रेम के गीत गाएगी ,
तो कभी विद्रोही हो जाएगी ,
कभी बालक सा कोमल मन होगा ,
तो कभी ज्ञानवान बन जाएगी ,
कलम चल पड़ी है मेरी ,
अब कहां रुकने वाली……..!!!!

💐!! वन्दन अभिनन्दन!!💐

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