“ये जिन्दगी है साहब” डा सतीश शर्मा की कविता

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ऐं🙏
ये जिन्दगी है साहब

अब तक जो निभाई है,
आगे भी निभ ही जाएगी,
ये जिन्दगी है साहब,
कुछ तो कमी सताएगी !

खुशियां जो आएं दामन,
गुलज़ार मन का आंगन,
फूलों-सी खिली जिन्दगी,
मुरझाते ही डराएगी,
ये जिन्दगी है साहब,
कुछ तो कमी सताएगी!

पहुंच कर बुलंदियों पर,
जीवन सफर शिखर पर,
अपनों से बिछुड़ने की,
मन में कसक जगायेगी,
ये जिन्दगी है साहब,
कुछ तो कमी सताएगी!

ख़्वाहिशें हैं इतनी,
कुछ तो छूट जाएगी,
जीवन के मधुवन में,
ये प्यास तो बढ़ाएगी,
ये जिन्दगी है साहब,
कुछ तो कमी सताएगी!

सांसों का तेज चलना,
कभी धक से थोड़ा थमना,
आस भरके धड़कनें,
रफ़्तार फिर बढ़ाएंगी,
ये जिन्दगी है साहब ,
कुछ तो कमी सताएगी!

चाहतों की गठरी ,
रख लें दबाके अंदर,
जो आ गई ये बाहर,
ये जिन्दगी चिढ़ाएगी,
ये जिन्दगी है साहब
कुछ तो कमी सताएगी!

ऐसे नहीं तो वैसे,
खुशी से कहो या गम से,
यह ज़िन्दगी कसम से,
धुन तो यही सुनाएगी,
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ये जिन्दगी है साहब
कुछ तो कमी सताएगी!

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