सचमुच रावण जिंदा है।।

Dr Satish Chandra Sharma
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*********!! दशकंधर रावण !**!******

 

मुझसे बोला दशकंधर कल सपने में आकर |

बहुत खुश तुम होते हो हर वर्ष मुझे जलाकर।

कागज बाँस खपच्चीका पुतला एक बना लिया।

आग लगाई उसमें और समझा मुझे जला दिया।

क्यों भ्रमित होते हो मैं क्या नन्हा कोई परिंदा हूँ।

अपने अन्तर में झाँकों मैं वहाँ अभी भी जिंदा हूँ।

हर घर के जन जन में हर मन में मुझको पाओगे।

मुझे मारने को तुम इतने राम कहाँ से लाओगे।।

 

मेरे सँहारक श्री राम मूर्ति बने अब बिकते हैं।

रावण देखे बहुत परन्तु अब राम नहीं दिखते हैं।

नृशंस हत्या लूट बलात्कार सब निशंक बने है।

आशाराम रामरहीम राम नाम पर कलंक बने हैं।

मैंने सीताको छुआ नहीं अब चीर हरण होता है।

छल कपट झूठ बेईमानी का ही वरण होता है।

मैं लंकापति रावण यहाँ चलती मेरी मनमानी है |

तुमने तो राम को माना पर कहाँ राम की मानी है |

 

राम नाम के व्यापारी केवल व्यापार ही जाना है।

रामचरित्र क्या है मुझसे बेहतर नहीं पहिचाना है।

मैं मायावी लंकेश भला क्यातुम मुझको संहारोगे।

तिलतिल तुमको माररहा तुमक्या मुझको मारोगे।

मैं सबकी छाती पर बैठा अब यूँ ही मूँग दलूँगा

मार नहीं पाओगे मुझको मैं तुमसे नहीं मरूँगा।

लंकापतिकी बातें सुन मन बहुत हुआ शर्मिंदा है।

आँख खुली तो देखा मैंने सचमुच रावण जिंदा है।।

 

डॉक्टर सतीश चंद शर्मा

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